सिंहासन की छाया – दूसरा अध्याय | Royal Betrayal Epic in Hindi Part 2

 सिंहासन की छाया – दूसरा अध्याय




आर्यन का शासन शुरू हो चुका था। महल के गलियारों में उसकी ठंडी, आदेशात्मक आवाज गूंजती थी।


अदिति रानी के रूप में राज करती थी, लेकिन सिंहासन का असली स्वामी सिर्फ एक था—आर्यन।


शुरुआत में अदिति को लगता था कि अब उसके हाथ में सबकुछ है। लेकिन धीरे-धीरे उसने महसूस किया—आर्यन उसकी बात कम सुनता था, और उसकी निगाहें अक्सर नई महत्त्वाकांक्षाओं में डूबी रहती थीं।

एक रात, जब महल के आँगन में बारिश हो रही थी, अदिति ने कहा—
"तुमने वादा किया था कि हम साथ राज करेंगे।"


आर्यन ने शराब का प्याला उठाते हुए हँस दिया।
"साथ? मैंने वादा किया था कि तुम रानी बनोगी, और वो तुम हो। लेकिन फैसले मैं लूँगा—हमेशा।"


उसकी आँखों में वह चमक थी जो अदिति को डराने लगी थी।


उसी रात, उसने चुपके से पुराने दरबारियों को बुलाया—वो लोग जो अभी भी राजा विक्रम के प्रति वफादार थे।
"मुझे उसकी जगह चाहिए," अदिति ने कहा, "लेकिन खुले युद्ध से नहीं—उसके दिल में ज़हर घोलना होगा।"


दिन बीतते गए। अदिति ने अफवाहें फैलानी शुरू कीं—कि आर्यन अपनी नयी रानी की तलाश में है, कि वह अदिति को सिर्फ मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। महल के अंदर विश्वास डगमगाने लगा।


आर्यन को कुछ शक तो हुआ, लेकिन वह अपनी जीत के नशे में इतना खोया था कि सच्चाई देख ही नहीं पाया।
और फिर—एक रात, अदिति ने उसे वही शराब का प्याला दिया जो कभी उसने उठाया था।
आर्यन ने प्याला होंठों से लगाया… और अगली सुबह, सिंहासन खाली था।


महल के लोग कहते हैं—आर्यन की आखिरी साँस में अदिति का नाम था, और उसकी आँखों में वही अविश्वास था जो कभी विक्रम की आँखों में था।


अदिति अब अकेली शासक थी।

लेकिन बाहर, सीमा पर, एक पुराना राजा—विक्रम—अब भी साँस ले रहा था… और उसकी आँखों में सिर्फ एक ही चीज़ जल रही थी—प्रतिशोध


टिप्पणियाँ