राजा खुद फाँसी चढ़ गया! | अंधेर नगरी चौपट राजा की सबसे मज़ेदार कहानी 🤯

 🪔 अंधेर नगरी चौपट राजा - आरोही ज्योतिर्



कहानी कैथी लिपि में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

यह बहुत पुरानी बात है। एक गुरु थे जिनके दो शिष्य थे — रामप्रसाद और श्यामप्रसाद। वे तीनों नगर-नगर घूमते थे, प्रवचन करते और भिक्षा से जीवन यापन करते थे।


एक दिन वे एक नगर पहुँचे। गुरुजी नगर के बाहर रुक गए और अपने दोनों शिष्यों को नगर की जानकारी लेने भेजा।


दोनों शहर में घूमें, भिक्षा माँगते गए। अचानक रामप्रसाद ने एक नागरिक से पूछा:
"भाई साहब, इस नगर का नाम क्या है?"

नागरिक बोला: "अंधेर नगरी।"

दोनों चौंक गए। श्यामप्रसाद ने पूछा: "और यहाँ के राजा कौन हैं?"

नागरिक ने बड़ी श्रद्धा से कहा: "हमारे चौपट राजा!"

थोड़ी देर में दोनों को भूख लगी। एक दुकान पर जाकर पूछा:
"भाईया, भाजी कितने की है?"

दुकानदार: "एक टके में एक सेर।"

हैरानी में रामप्रसाद बोला: "क्या?! इतनी सस्ती? खाजा कितने का है?"

दुकानदार बोला: "वो भी टके सेर।"

श्यामप्रसाद ने मज़ाक में कहा: "भाई, कहीं राजा खजाने के बदले खाजा तो नहीं बाँट रहे?"


दोनों ने जी भर के खाया और गुरुजी के लिए भी ले गए। जब गुरुजी ने पूछा:

"आज भिक्षा कैसी मिली बेटा?"

तो दोनों बोले:
"गुरुजी, ये नगर तो स्वर्ग है! टके सेर भाजी, टके सेर खाजा!"

गुरुजी का माथा ठनका। बोले:
"बेटा, जहाँ सब एक जैसा बिके, वहाँ समझ लो कुछ गड़बड़ है। अंधेर नगरी, चौपट राजा – ये तो खतरे की घंटी है। सामान समेटो और निकलो।"

रामप्रसाद मान गया, लेकिन श्यामप्रसाद बोला:
"गुरुजी, इतने सस्ते में खाना मिल रहा है, यहाँ क्यों न रहें? मैं तो यहीं रहूँगा।"

गुरुजी बोले:
"जैसी तेरी मर्जी बेटा। हम निकलते हैं।"

गुरुजी और रामप्रसाद चले गए। श्यामप्रसाद वहीँ रुक गया।


🍛 Scene II: चौपट न्याय की गूंज


इधर राज्य में एक दिन एक दीवार गिर गई और एक बकरी मर गई। बकरीवाला फरियाद लेकर आया:
"महाराज! दीवार गिर गई और मेरी इकलौती बकरी मर गई। अब मेरा क्या होगा?"

राजा ने तुरंत आदेश दिया:
"दीवार के मालिक को पकड़ो!"

मालिक बोला:
"हुज़ूर, मिस्त्री ने गारा गीला कर दिया था, मेरी क्या गलती?"
राजा: "मिस्त्री को बुलाओ!"

मिस्त्री आया:
"राजा जी, मशक वाला ज्यादा पानी दे गया, मैं क्या करता?"
राजा: "मशक वाला पेश हो!"

मशक वाला:
"महाराज, भेड़ वाला बड़ी भेड़ दे गया, जिससे बड़ी मशक बनी। मेरी क्या गलती?"

राजा ने भेड़ वाले को बुलाया।
भेड़ वाला घबरा गया:
"हुज़ूर! मंत्रीजी छोटी भेड़ ले गए थे, बड़ी ही बची थी मेरे पास।"

राजा गरजा:
"मंत्री! सारी गड़बड़ी की जड़ तुम हो! तुम्हें फाँसी की सजा!"

मंत्री बेहोश होते-होते बचा। लेकिन फाँसी के दिन जब मंत्री को फंदे पर चढ़ाया जाने लगा, पता चला कि वो तो इतने दुबले हो गए थे कि फंदा गर्दन से लटक ही नहीं रहा!


राजा ने तुरंत आदेश दिया:
"पूरे राज्य में किसी मोटे गले वाले को ढूँढो!"

सिपाही निकले और तलाशते-तलाशते श्यामप्रसाद को ढूँढ लाए — जो अब तक खूब खा-खाकर तोंदू हो गया था।


राजा ने देखा और बोला:
"वाह! गर्दन एकदम परफेक्ट है। इसे फाँसी चढ़ाओ!"


🔔 Scene III: गुरुजी की चतुराई और फाँसी का तमाशा


श्यामप्रसाद काँपने लगा। बोला:
"राजन! मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं अपने गुरुजी से मिलना चाहता हूँ।"

राजा: "ठीक है, गुरुजी को बुलाओ!"


गुरुजी आए। श्यामप्रसाद ने रो-रो कर सब बताया। गुरुजी ने कान में कुछ कहा और फिर दोनों में ज़ोरदार बहस होने लगी।


गुरुजी बोले:
"मैं गुरु हूँ, फाँसी पर चढ़ने का पहला अधिकार मेरा है!"

श्यामप्रसाद:
"अपराधी मैं हूँ, ये मौका मैं कैसे छोड़ूँ?"

राजा चौंका। पूछा:
"अब ये नई नौटंकी क्या है?"

गुरुजी बोले:
"राजन! आज का मुहूर्त इतना पवित्र है कि जो फाँसी चढ़ेगा, उसे सीधे स्वर्ग मिलेगा। मैं नहीं छोड़ूँगा ये स्वर्ग यात्रा!"

श्यामप्रसाद: "मैं अपराधी हूँ, टिकट मेरा है! मैं जाऊँगा!"


राजा सोचने लगा: “फ्री स्वर्ग यात्रा! मौका अच्छा है…”

फिर बोला:
"मैं राजा हूँ, सबसे बड़ा अधिकारी मैं हूँ। जल्लाद! मुझे फाँसी पर चढ़ाओ!"


🎯 और फिर क्या हुआ?


राजा खुद फाँसी चढ़ गया। मंत्री को बख्शा गया। गुरुजी मुस्कराए। 

प्रजा ने मिलकर गुरुजी से कहा:
"आप ही हमारे नए राजा बनिए!"


गुरुजी बोले:
"न रे भाई, मैं तो फक्कड़ साधु हूँ। ये लो, श्यामप्रसाद अब बदल गया है, वही तुम्हारा नया राजा होगा।"


श्यामप्रसाद को राजा बनाया गया और गुरुजी फिर निकल पड़े अपनी अगली यात्रा पर।






🌟 शिक्षा (Moral of the Story)


👉 अगर शासन अयोग्य हो, तो जनता का जीवन दुखी हो जाता है।

👉 गलत व्यवस्था हमेशा बर्बादी की ओर ले जाती है।




📣 अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो नीचे कमेंट ज़रूर करें। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुत मूल्यवान है।


🙏 और हाँ, ऐसी और दिल छूने वाली कहानियाँ पढ़ने के लिए ब्लॉग “Katha 01” को फॉलो करना न भूलें!


टिप्पणियाँ