सिंहासन की छाया | Royal Betrayal Epic in Hindi Part 1

सिंहासन की छाया




महल की ऊँची दीवारों के भीतर, चाँदनी बिखरी हुई थी।

राजा विक्रम अपने सोने के सिंहासन पर बैठा, गहरे विचारों में डूबा था। उसकी आँखों में थकान थी, लेकिन चारों ओर शक्ति का कठोर आवरण पसरा हुआ था।


उसके सबसे विश्वस्त मंत्री, आर्यन, कमरे में प्रवेश करता है।
"महाराज," उसने झुककर कहा, "हमारे शत्रु राज को जीतने का समय आ गया है। बस आपका आदेश चाहिए।"


राजा ने उसकी आँखों में देखा—वहीं आँखें जो वर्षों से निष्ठा का दावा करती आई थीं।


"आर्यन," विक्रम ने धीमे स्वर में कहा, "तुम पर मुझे उतना ही भरोसा है जितना अपने रक्त पर।"


लेकिन महल की परछाइयों में, सच्चाई कहीं और पल रही थी।
आर्यन रातों को चुपचाप राजकुमारी अदिति से मिलने आता, और कान में फुसफुसाता—
"तुम्हारे पिता बूढ़े हो चुके हैं। उनकी ताकत अब कमजोर है। जब सिंहासन खाली होगा, तुम मेरी रानी बनोगी… और मैं इस राज्य का अकेला स्वामी।"


अदिति की मुस्कान में मासूमियत नहीं, बल्कि महत्वाकांक्षा चमक रही थी।
"और अगर पिता ने कभी अपना सिंहासन छोड़ा ही नहीं?" उसने पूछा।


आर्यन ने हल्की हँसी के साथ कहा, "तो हम उन्हें छोड़ने पर मजबूर करेंगे।"


कुछ ही दिनों बाद, युद्ध की घोषणा हुई। दुश्मन का हमला महल की दीवारों तक पहुँच चुका था—और इस पूरे समय, राजा विक्रम यह सोच भी नहीं पा रहा था कि सबसे बड़ा हमला उसके अपने घर के भीतर से होने वाला है।


युद्ध के बीच, आर्यन ने एक गुप्त योजना अमल में लाई। राजकुमार सेना की अग्रिम पंक्ति में थे, और पीछे से आदेश गया—एक ऐसा आदेश जो सैनिकों को भ्रमित कर दे। कुछ ही घंटों में, राजा की सेना टूटने लगी।


जब विक्रम युद्धभूमि से लौटे, उन्हें महल सुनसान मिला। सिंहासन पर अब आर्यन बैठा था, और उसके बगल में अदिति—अब उसकी रानी।


विक्रम के चारों ओर गद्दार पहरेदार खड़े थे।

"आर्यन…" विक्रम के स्वर में अविश्वास था, "तुमने—"
"मैंने वही किया जो इस राज्य को चाहिए था," आर्यन ने ठंडे स्वर में कहा, "एक नया युग। तुम्हारे बिना।"


और उसी क्षण, राजा को समझ आया—सबसे खतरनाक दुश्मन वे नहीं होते जो सीमा पार खड़े हों… बल्कि वे होते हैं, जो आपकी छाया में साँस लेते हैं।


दूसरा अध्याय

टिप्पणियाँ