सिंहासन की छाया – पाँचवां अध्याय | Royal Betrayal Epic in Hindi Part 5

 सिंहासन की छाया – पाँचवां अध्याय




महल अब शांति का ढोंग कर रहा था, लेकिन भीतर हर गलियारे में साज़िश की हवा थी।

राजा विक्रम जान चुका था कि समर उसके लिए प्याला तैयार कर रहा है।

पर समर भी जानता था कि उसके पिता ने कभी हारना नहीं सीखा।


युद्ध की जगह अब शब्दों और नजरों का खेल था।

दरबार में, विक्रम समर की तारीफ करता—
"राजकुमार में वह तेज है जो किसी राजा में होना चाहिए।"

लेकिन भीतर ही भीतर, वह अपने पुराने जासूसों को सक्रिय कर चुका था, ताकि हर पल समर की चालें उसे मालूम रहें।


समर भी चुप नहीं था।

उसने महल के रसोइयों, सिपाहियों, यहाँ तक कि विक्रम के निजी पहरेदारों तक को अपने पक्ष में कर लिया।

धीरे-धीरे, राजा के चारों ओर की दीवारें कमजोर होने लगीं।


एक रात, विक्रम ने भोज रखा—बड़ी दावत, जहाँ सारा दरबार मौजूद था।

समर के सामने वही सुनहरी प्याली रखी गई, जिसमें मदिरा चमक रही थी।

विक्रम ने मुस्कुराकर कहा,
"आज, मेरे बेटे की जीत का जश्न।"


समर ने प्याली उठाई—लेकिन उसी पल, विक्रम ने अपना प्याला भी उठाया और पी लिया।

कमरे में सन्नाटा फैल गया।

समर की आँखें फैल गईं—वह जानता था कि ज़हर तो उसके प्याले में था, लेकिन पिता ने… खुद ही पी लिया।


विक्रम ने धीमी आवाज़ में कहा,
"राजा होना, बेटा, सिर्फ दूसरों को मारने की ताक़त नहीं… बल्कि मरने का समय पहचानने की कला भी है।

आज से सिंहासन तुम्हारा है… और मेरे साथ तुम्हारा सबसे बड़ा डर भी मर जाएगा—क्योंकि अब तुम्हें अकेले इस सिंहासन की प्यास से लड़ना होगा।"


कुछ ही क्षणों में, राजा विक्रम की साँसें थम गईं।

दरबार ने समर के सामने झुककर उसे नया राजा घोषित किया।


लेकिन उस रात, जब महल खाली था, और समर अकेला सिंहासन पर बैठा था—उसे महसूस हुआ कि दीवारें फुसफुसा रही हैं…

"अब अगला खिलाड़ी ढूँढो, क्योंकि खेल खत्म नहीं हुआ है।"

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