💔 वो राखी जो कभी कलाई तक पहुंची ही नहीं…
📍 भाग 1: मिडिल क्लास मोहल्ला, लखनऊ
सिमी और अंकित एक ही मोहल्ले में पले-बढ़े।
घर आमने-सामने थे, माँ-बाप पुराने परिचित।
सिमी के दो बड़े भाई थे, लेकिन वह बचपन से अंकित को भी "भैया" कहती थी।
रक्षाबंधन पर जब उसके दोनों भाई हॉस्टल चले गए, तो सिमी ने पहली बार अंकित से कहा:
“भैया, इस बार राखी तुमसे बाँधूंगी… चलेगा?”
अंकित मुस्करा दिया। तब वो 15 साल का था।
उसी साल सिमी ने पहली बार उसे राखी बाँधी थी।
📅 भाग 2: वक़्त बीतता गया… और भावनाएँ बदलती गईं
5 सालों तक ये सिलसिला चला।
हर रक्षाबंधन को सिमी राखी बाँधती, अंकित मिठाई खिलाता, और दोनों की हँसी से मोहल्ला गूंज उठता।
लेकिन 12वीं के बाद अंकित इंजीनियरिंग के लिए नोएडा चला गया।
सिमी अब कॉलेज में थी। फोन पर बात कम हो गई।
WhatsApp पे कभी "भैया" लिखा जाता, कभी सिर्फ "Hi"।
सिमी की एक सहेली ने एक दिन पूछा —
"तू हर साल उसको राखी क्यों बाँधती है? सगा भाई तो है नहीं।"
सिमी चुप रही।
वो खुद भी शायद पहली बार सोच रही थी…
क्या ये रिश्ता सिर्फ भाई-बहन का ही है?
💌 भाग 3: वो आख़िरी राखी
सिमी ने रक्षाबंधन से एक दिन पहले अंकित को मैसेज किया —
“इस बार आओगे न?”
अंकित ने typing करते-करते मैसेज डिलीट किया…
और सिर्फ लिखा:
"नहीं आ पाऊँगा।"
लेकिन उस साल अंकित ने किसी से भी राखी नहीं बंधवाई।
और सिमी ने किसी को राखी नहीं बाँधी।
🧳 भाग 4: 3 साल बाद – एक शादी और एक निमंत्रण
सिमी को एक शादी का कार्ड मिला।
लिफाफे पर लिखा था — "श्रीमती व श्रीमान शर्मा के सुपुत्र अंकित की शादी…"
सिमी ने कार्ड हाथ में लिया और चुपचाप छत पर चली गई।
उसने फोन उठाया और एक फोटो देखी —
जिसमें वो और अंकित, 5 साल पहले, एक राखी के दिन मुस्करा रहे थे।
✉️ भाग 5: और एक अधूरी राखी
शादी वाले दिन सिमी ने एक लिफाफा भेजा।
अंदर एक राखी थी, और एक चिट्ठी —
“भैया, ये शायद मेरी आख़िरी राखी है तुम्हारे नाम की।रिश्ता बदला, हालात बदले, लेकिन ये धागा अब भी बंधा है मेरे मन में।
मैंने कभी कुछ और चाहा हो या नहीं, ये पता नहीं…लेकिन हर रक्षाबंधन पर तुम्हारी कलाई खाली न हो —शायद यही मेरी सबसे गहरी चाह थी।”
📦 भाग 6: वो राखी अब भी उसी अलमारी में है
अंकित ने कभी उस चिट्ठी का जवाब नहीं दिया।
लेकिन शादी के बाद जब उसकी पत्नी को वह राखी मिली…
तो उसने पूछा —
“ये किसकी है?”
अंकित ने कहा —
“एक रक्षाबंधन था…जो कभी बंधा ही नहीं…लेकिन टूट भी कभी नहीं पाया।”
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